SMART MAN
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बाहर कितना शोर है और तुम सुन नहीं पाते हो
क्या तुम्हें वाक़ई सुनाईं नहीं देता?
या फिर ‘बहरा’ बनने में काफ़ी कुशल हो गए हो ?
आँखों के सामने सब कुछ देखा तुमने - फफोले और ख़ून
क्या तुम्हें वाक़ई ‘दिखाई’ नहीं देता ?
या फिर ‘अन्धा’ बनने में काफ़ी कुशल हो गए हो ?
मेट्रो के डिब्बे में सामने एक औरत जब परेशान खड़ी थी
तुम आँखे बंद कर कैसे सो जाते हो ?
या फिर ‘मेट्रो के कलाकार ’
बनने में काफ़ी कुशल हो गए हो ?
तुम्हारा दोस्त चौराहे पे खड़ा रह गया तुम्हारी आस में
कैसे तुम नज़र चुराते हुए क़रीब से गुज़र गए ?
या फिर ‘भीड़ का हिस्सा’ बनने में काफ़ी कुशल हो गए हो ?
ज़्यादा नहीं बस दस मिनट के फ़ासले में है उसका मकान
क्यों नहीं बचपन के जैसा बिन बुलाए पहुँच जाते हो ?
या फिर ‘अजनबी ’
बनने में काफ़ी कुशल हो गए हो ?
मेरे मकान के इर्द-गिर्द मकान है जुड़े हुए कई सारे
आग तो लगी है दूर सो फिर मेरा क्या जाएगा ?
या फिर इस ‘ग़लतफ़हमी ’
को पालने में काफ़ी कुशल हो गए हो ?
आवाज़ नहीं उठाते हो ज़रूरत पड़ने पर भी आजकल
लेकिन मुँह पे पट्टी लगाकर ये हाथ क्यों हिलाते हो?
या फिर ‘गूँगे ’
बनकर जीने में काफ़ी कुशल हो गए हो ?
हाथ जोड़े माँगते हो ईश्वर और अल्लाह के सामने
क्या तुम कुछ ऐसा माँगते हो जो ख़ुद कमा नहीं सकते?
या फिर ‘भिखारी’ बनने में काफ़ी कुशल हो गए हो ?
मैं कौन हूँ तुम कौन हो और वो कौन है ?
क्या वाक़ई तुम भूल गए हो ये सब ?
या ‘उसकी भूल-भुलैय्या’ में ख़ुद को छुपाने में कुशल हो गए हो?
न जाने तुम सब कैसे हो गए हो ?
(शायद Smart Man)
- नारायण गौतम, कलकत्ता, १३.०५.२०२०
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