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Monday, November 30, 2020

 

SMART MAN
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बाहर कितना शोर है और तुम सुन नहीं पाते हो
क्या तुम्हें वाक़ई सुनाईं नहीं देता?
या फिरबहराबनने में काफ़ी कुशल हो गए हो ?

आँखों के सामने सब कुछ देखा तुमने - फफोले और ख़ून
क्या तुम्हें वाक़ई दिखाई नहीं देता ?
या फिर अन्धा बनने में काफ़ी कुशल हो गए हो ?

मेट्रो के डिब्बे में सामने एक औरत जब परेशान खड़ी थी
तुम आँखे बंद कर कैसे सो जाते हो ?
या फिर मेट्रो के कलाकार बनने में काफ़ी कुशल हो गए हो ?

तुम्हारा दोस्त चौराहे पे खड़ा रह गया तुम्हारी आस में
कैसे तुम नज़र चुराते हुए क़रीब से गुज़र गए ?
या फिर भीड़ का हिस्सा बनने में काफ़ी कुशल हो गए हो ?

ज़्यादा नहीं बस दस मिनट के फ़ासले में है उसका मकान
क्यों नहीं बचपन के जैसा बिन बुलाए पहुँच जाते हो ?
या फिर अजनबी बनने में काफ़ी कुशल हो गए हो ?

मेरे मकान के इर्द-गिर्द मकान है जुड़े हुए कई सारे
आग तो लगी है दूर सो फिर मेरा क्या जाएगा ?
या फिर इस ग़लतफ़हमी को पालने में काफ़ी कुशल हो गए हो ?

आवाज़ नहीं उठाते हो ज़रूरत पड़ने पर भी आजकल
लेकिन मुँह पे पट्टी लगाकर ये हाथ क्यों हिलाते हो?
या फिर गूँगे बनकर जीने में काफ़ी कुशल हो गए हो ?

हाथ जोड़े माँगते हो ईश्वर और अल्लाह के सामने
क्या तुम कुछ ऐसा माँगते हो जो ख़ुद कमा नहीं सकते?
या फिर भिखारी बनने में काफ़ी कुशल हो गए हो ?

मैं कौन हूँ तुम कौन हो और वो कौन है ?
क्या वाक़ई तुम भूल गए हो ये सब ?
या उसकी भूल-भुलैय्या में ख़ुद को छुपाने में कुशल हो गए हो?

जाने तुम सब कैसे हो गए हो ?
(
शायद Smart Man)

- नारायण गौतम, कलकत्ता, १३.०५.२०२०

 

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