कहानी
तुम धड़कन
मैं आंचल
तुम चाँद
मैं बादल
मैं वक़्त के समंदर का लहर
तुम ठहराव का इक पल
मैं प्यास तुम जल
मैं पहाड़ों का घुमाव
तुम घना-वन शीतल
मैं ठहरा हुआ झील का पानी
तुम कल-कल बहती ज़िंदगानी
चार दिन की जवानी
चार पल की रवानी
रूका धड़कन,
ढला आंचल
उफन गया लहर
छलक गया पल,
चारो तरफ केवल जल-जल-जल
सब उथल-पथल
ऐसे ख़तम हुई रवानी
हाए इंसान तेरी यही कहानी I
-नारायण गौतम, कलकत्ता, 7/7/2014 (1
p.m)
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