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Sunday, August 23, 2015

.... बातों से मिलकर बातें!


.... बातों से मिलकर बातें!
इन्ने कहा उन्ने सुना
बातों का बुना इक ताना
सिलसिलों का बना बहाना
बातों से मिलकर बातें-बन जाता है अफ़साना
सांसो के जमावडे में
ज़िंदगी का टिमटिमाना
रुकने की चाह में
सफ़र में बनता है आशियाना
.... बातों से मिलकर बातें-बन जाता है अफ़साना
दर्द ढूंडते है शब्द
शब्द ढूंडते है मतलब
बातों की ठक ठका हट से
रास्ता खोजता रहता हूँ
जैसे एक खोजी हो गया हूँ मैं
ढूंडता ज़िंदगी का ख़ज़ाना
.... बातों से मिलकर बातें-बन जाता है अफ़साना
जो आज है वो कल बन जाता है
जो कल आएगा वो परसो'
बनाता है ऐसे ही
अब्स्ट्रक्ट पेंटिंग कोई picasso की तरह - मेरी ज़िंदगी का
मैं भी घुलता जाता हूँ धीरे-धीरे
जैसे रंग कोई पुराना
.... बातों से मिलकर बातें-बन जाता है अफ़साना


-नारायण गौतम,
5 मार्च,2015 (होली)9.20 a .m, calcutta


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